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गोरखपुर मुद्दे पर कई मीडिया हॉउस की संदिग्ध भूमिका

Hindustani
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मीडिया द्वारा मौतों का मुद्दा उठाया गया यह अच्छी बात है पर जल्बाजी में खबर दिखाने के चक्कर में मीडिया ने पूरे देश को भ्रमित करने का खासा प्रयास किया। जब मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस की तो बहुत सारे पत्रकार पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आये। मौतों के आंकड़े देने के बाद जब यह बात पता चला कि सीधे तौर पर सरकार की कोई दोषी भूमिका नहीं है, तो भी बिना सिर पैर के सवाल पूछे गए।
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यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री ने बड़ी कठोरता से और साफ़ सुथरे तरीके से लोगों को मुद्दे को स्पष्ट किया। कई समाचार चैनल अभी भी सरकार को दोषी बता रहे हैं जिस पर बहुत आश्चर्य होता है।
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चुकि कई मीडिया चैनेल वालों ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग की इस कारण जब स्थति उनके उलट दिखाई पड़ी तो उनके ईगो (ego ) को धक्का और अब भी वो लोग योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
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कई मीडिया घरानों ने तो पता कहाँ कहाँ से चिट्ठी लेकर खबर चलाई। नौ तारिख की चिट्ठी का हवाला दिया जबकि ऑक्सीजन का पैसा सात तारिख को ही मेडिकल कालेज के खाते में दाल दिया गया था। यह तथ्य जानने के बावजूद बार बार वही सवाल पूछने में नहीं हिचकिचाते न ही ऐसे सवाल पूछने में इनको कोई शर्म आती है । चुकि उनको कुछ न कुछ बोलना है और अपने आपको सही साबित करना है इस कारण बहुत सारे मीडिया के लोग प्रदेश सरकार के पीछे पड़े हुए है।

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मुख्य मंत्री को यह जानते हुए भी कि वो बेहद संवेदनशील और सख्त हैं, घटना की जांच के बाद कोई भी दोषी बचने की हालत में नहीं होगा। फिर भी एकतरफ़ा रिपोर्टिंग की हवस अभी भी सवार है। मीडिया के आचरण पर हर फोरम पर सवाल उठाये और मीडिया की फजीहत की पर ये हैं की सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। गिने चुने पत्रकार और मीडिया हॉउस ही ठीक ठाक और साफ़ सुथरी रिपोर्टिंग में भरोसा रखते हैं।
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गोरखपुर के मेडीकल कालेज में रोजाना चार पांच हजार मरीज रोजाना आते हैं और लगभग पांच सौ मरीज रोज भरती होते हैं। पर यदि मौतों का आंकड़ा सही प्रश्तुत करते तो कई मीडिया घरानों की फजीहत न होती। अतः जल्दबाजी में और टी. आर. पी. के चक्कर में बिन सिर पैर की बातें करने में लगे हैं।
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कुछ मीडिया वालों को सिर्फ सवाल पूछना होता है, क्या पूछना है उनको नहीं पता। कुछ को तो यह भी नहीं पता कि एक डाक्टर का काम क्या होता है और अस्पताल प्रशासन क्या काम करता है ?
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अतः मौतों के आंकड़ों को सही ढंग से प्रस्तुत करने क कोशिश करनी चाहिये जिससे उनकी छवि ठीक रहे और उनपर लोग भरोसा करने लगे।
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मीडिया की रिपोर्टिंग भी इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे सरकार को सही दिशा मिल सके। पर मीडिया के लोगों में अहंकार इतना ज्यादा है कि जो उनकी आवभगत न करे उसके उसके लिए बस मौका तलाशते रहते हैं कि कब उसके खिलाफ मौका मिले और बस मोर्चा खोल दिया जाय।
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एक निजी समाचार चैनल बड़ी जोर शोर से योगी सरकार पर आरोप जड़ रहा था। थोड़ी ही देर में उसने एक मुस्लिम डाक्टर की फोटो लगाकर उसका गुणगान और महिमामंडन करने लगा। बाद में जब उस डाक्टर की असलियत सामने आई तो उस मीडिया चैनल ने उसके विषय में कोई खबर नहीं चलायी। इससे यह साबित होता है कि इनको बस केवल समाचार के नाम पर कुछ न कुछ भड़काऊ दिखाना है। सच्चाई से इनका कोई वास्ता नहीं नहीं है यदि गलती से कोई खबर सही निकल गयी तो ईश्वर की ही देन समझिये।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हराने के लिए मीडिया के लोगों ने एडी चोटी का जोर लगा दिया। पर नतीजा क्या हुआ ? मीडिया की ढंग से फजीहत हुई। आज भी चुकि डोनाल्ड ट्रम्प मीडिया के आचरण को ध्यान में रखते हुए उसको ज्यादा तवज्जो नहीं देते इसलिए आज भी मीडिया के लिए वो एक खलनायक ही हैं और मीडिया उनको दुनिया के एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत करती है।
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सन २०१४ के लोक सभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री के उमीदवार के तौर पर प्रस्तुत किये जाने पर यदि गिने चुने मीडिया चैनेल को यदि छोड़ दें, तो सभी ने मोदी के खिलाफ गोधरा काण्ड को लेकर मोर्चा खोला हुआ था। पर नतीजा क्या हुआ ? मीडिया की यही स्थिति नोटबंदी के समय थी पर नतीजा क्या हुआ ?
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मीडिया किसी भी मुद्दे को अपने हिसाब से गलत या सही बताने का प्रयास करती है और उनके अनुसार क्या सही बस वही होना चाहिए। यदि उसके अनुरूप नहीं हुआ तो फिर एकतरफा (biased reporting) रिपोर्टिंग करके लोगों को गुमराह करने में लग जाती है।
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आखिर समाज में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने वाली मीडिया खुद में व्याप्त भ्रष्टाचार को क्यूँ नहीं दिखाती। यदि वह ऐसा नहीं कर रही है तो उसको अन्य किसी प्रकार के भ्रटाचार पर ऊँगली उठाने का भी कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
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पिपली लाइव और पेज थ्री तथा अन्य कई फिल्मो में मीडिया के लोगों की भूमिका को बखूबी दिखाया गया है. यदि मीडिया के लोग खुद से ईमानदार नहीं हो सकते तो यह एक बहुत बड़ा उग्रवाद है, जिसमे लोगों को गुमराह करने और अपनी प्रभुता स्थापित करने का प्रयास जानबूझकर और शाजिश के तहत किया जाता है।
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गोरखपुर की घटना में मीडिया कि यही भूमिका साफ़ नजर आती है। चुकि मुख्यमंत्री योगी ज्यादातर मीडिया की असलियत से बखूबी परिचित हैं और वो इन लोगों को बेवजह की तवज्जो नहीं देते इस कारण इस मुद्दे को मीडिया द्वारा बेहद जोर शोर से उठाया गया।
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मैंने कई बार देखा है कि भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी मीडिया को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे, इसलिए कई मीडिया हॉउस उनकी गलती निकलने में ही अपना समय और परिश्रम लगाते थे। और यदि भारत कोई मैच हारता था तो महेंद्र सिंह धोनी पर सारे आरोप ऐसे जड़ते थे जैसे ये बहुत बड़े शोधकर्ता और ज्ञानी लोग हों। मेरी द्रष्टि में कुछ दिनों बाद एकतरफा पत्रकारिता करने वाले मीडिया के लोगों को कोई भी व्यक्ति तवज्जो ही नहीं देगा। जिससे उनकी विशष्ट बनने की ललक धरी की धरी रह जायेगी।

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