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कहते है की भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती, और भगवान की लाठी दिखाई भी नहीं पड़ती केवल उसका असर महसूस भी होता है और दिखाई भी देता है। मैं ईश्वर की सत्ता के अस्तित्व का आधुनिक विश्व में प्रदर्शन, का एक जीता जागता सुबूत देना चाहूँगा।
अब यह जानते हुए की हम सभी एक ही माँ बाप के बच्चे है परंतु इतना बड़ा सामाजिक परिवर्तन हो गया कि समाज जाति, धर्म, वर्ण इत्यादि धेरे सारे वर्गों में बट गया है। लोग एक दुसरे पर अपने विश्वास और मान्यताओं तो थोपने में लगे हैं।
लोगों ने भगवान को जाना और माना है। भगवान को परम सत्ता और सर्वसक्तिशाली माना गया। परंतु जैसे जैसे मनुष्य की ताकत बढ़ती गयी, उसके अहंकार में भी वृद्धि हुई। जब कुछ कमजोर और गलत हाथों में शक्ति आ जाती है और यदि ऐसे लोग सत्ता और हथियार भी हासिल कर लेते हैं तो वो किसी को कुछ भी नही समझते। वो अपनी परम्परों और मान्यताओं को हर हाल में दुसरे पर थोपने की कोशिश करते हैं। यहाँ तक की ये लोग ऐसे धर्म और पंथ भी बना देते हैं कि कहते हैं कि यदि कोई उनके बताये मार्ग पर नहीं चलता तो उसे धरती पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में दूसरों को या तो उनके पंथ और मान्यताओं को मजबूरन स्वीकार करना पड़ता है अथवा उनको अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। परंतु हद तो यह है कि लोग भगवान में भी अंतर करते हैं। जिस स्वरुप में वो भगवान् को देखते है उसी स्वरुप को ही ईश्वर मानते हैं और दुसरे अन्य स्वरूपों को ईश्वर नहीं मानते। उदंडता करते हुए क्रूरता की हदें पार करके भगवान् के अन्य स्वरूपों पर हमला भी करते रहते हैं।
ज्यादातर लोग ईश्वर की शक्ति की कथाएँ पौराणिक ग्रंथों में ही पढ़ते और सुनते हैं। परंतु एक जीती जागती समकालीन कथा हम देख भी सकते है। सन 2001 में अफगानिस्तान के बामियाँ में कुछ आतंकियों ने भगवान बुद्ध की ४ – ५ (चौथी – पांचवी) सदी की प्रतिमा को डायनामाइट और तोपों से ढहा दिया। भगवान बुद्ध की यह मूर्ति विश्व धरोहर में शामिल थी। परंतु वहां की सत्ता की मिली भगत और धार्मिक कट्टरता को मजबूत करने के उद्देश्य से इस मूर्ति को गिराया गया। जिसमे तालिबान नामक संगठन ने पूरी घटना को अंजाम दिया।
परंतु जब धर्मात्मा लोग आसुरी शक्तियों से घिर जाते हैं और आसुरी शक्तियों पर सामान्य लोगों का बस नहीं चलता तो भगवान स्वयं आसुरी शक्तियों को विनाश की और धकेल देते हैं।
यह घटना मार्च २००१ (2001) की है. अफगानिस्तान और विश्व की महाशक्ति अमेरिका का इससे पहले आपस में कोई महत्वपूर्ण रिश्ता भी नहीं था। शायद अमेरिका उसके बारे में कभी सोचता भी नहीं होगा। परंतु इसे ईश्वर की लाठी ही कहेंगे कि इस घटना के छः महीने के अंदर ही अमेरिका ने अफगानिस्तान ने हमला कर दिया।
तब से आज तक अफगानिस्तान बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। तालिबान के तो कहने ही क्या उस पर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके आतंकवादी आज तक ढूंढ ढूंढ कर मारे जा रहे हैं. अब उनका अस्तित्व ज्यादा दिनों का नहीं बचा। अब इसे इश्वर का दिया हुआ दंड ना माने तो क्या माने।
कहने का आशय यह है कि मनुष्य तो मनुष्य ये भगवान् को भी नहीं छोड़ते। यह एक जीता जागता सुबूत है कि इश्वर सभी काल खंड में अपने अस्तित्व का प्रदर्शन जरूर कर देते है, जिसे मनुष्य को जरूर समझना चाहिए।
अब जब भगवान् ने इनको ठिकाने लगा दिया है तो अब कम से कम इन जैसी सोच रखने वाले लोगों को अब अपने विचारों में सुधार लाना चाहिए। कम से कम इश्वर की सत्ता को तो चुनौती नहीं देनी चाहिए। ईश्वर का स्वरुप अलग अलग पंथ और मान्यताओं में अलग अलग होता है। उस पर अपनी मान्यताओं को जबरदस्ती नहीं थोपना चाहिए। यदि इनको अपने धर्म या पंथ अथवा मान्यताओं की सेवा करनी है तो ऐसे लोगों को चाहिए कि ये अपने अनुगामियों के कल्याण के लिए कार्य करें, जिससे उनकी आर्थिक, सामाजिक, और मानसिक प्रगति हो पाए. इससे उनके अनुगामी भी शांति के साथ जीवन व्यतीत कर पायेंगे और दुसरे पंथ के लोग भी उनसे कुछ सीख सकेंगे। नफरत फैलाना किसी भी धर्म अथवा पंथ की सेवा नहीं हो सकता। कोई भी धर्म मानव कल्याण के लिए बनना चाहिए न कि मानवता को नुकसान पहुचाने के लिए। अतः ऐसी विचारधारों में परिवर्तन की आवश्यकता है।
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