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मुस्लिम समाज में तीन तलाक का मतलब है कि यदि किसी मुस्लिम महिला का पति अपनी पत्नी से तीन बार तलाक बोल देता है तो तलाक मान लिया जाता है। परन्तु मुद्दा यह है कि उस महिला को यह अधिकार नहीं होता है कि वह उस पति से अपने बाकि उम्र के लिए गुजारा भत्ता मांग सके। ऐसी स्थिति में तलाक शुदा औरत के लिए भविष्य अन्धकार मय हो जाता है और उसे अपने रोजी रोटी के लिए परेशान होना पड़ता है। शादी और तलाक सामाजिक व्यवस्था के अंग हैं, लोग हजार शादी करें और हजार तलाक दें, परन्तु तलाक होने के बाद यदि महिला बेरोजगार है अथवा कमाने में सक्षम नहीं है तो उस महिला को गुजारा भत्ता जरूर मिलना चाहिए। हिन्दू समाज में भी बहुत सी कुरीतियाँ थीं जैसे सती प्रथा जो कि बहुत ही घृणित व्यवस्था थी, और यह व्यवस्था भी भारत के धर्म के ठेकेदार ढोंगियों ने स्थापित की थी। उन लोगों पर लानत हैजिन्होंने सती प्रथा को स्थापित किया था जिसके लिए उन्हें और उनके घटिया सोच को कभी माफ़ नहीं किया जाना चाहिए। भारत में औरतों की दुर्दशा के लिए जो भी ढोंगी लोग जिम्मेदार है उन सभी का खुल कर विरोध करना चाहिए। एक तरफ औरत को देवी कह कर पूजा करने का ढोंग करते हैं और दूसरी ओर उनको दबाकर रखने के लिए तरह तरह के उपाय और व्यवस्थाएं बना रखे हैं। जिस भी समाज अथवा जिस देश में औरतों की इज्जत नहीं होती वो समाज और वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता और न ही सुखी रह सकता है।हिन्दू समाज ने इस कुरीति को अपने समाज से बाहर कर दिया है परन्तु आज भी दहेज़ जैसी बुराइयाँ हमारे सामाज में मौजूद है जिसे जड़ से उखाड़ना बहुत आवश्यक है। लेकिन जब दहेज़ का विरोध होता है तो कोई भी धर्म गुरु दहेज़ का समर्थन नहीं करता है।परन्तु मुस्लिम समाज में यह स्थिति बिलकुल भिन्न है। यहाँ पर तीन तलाक के मुद्दे पर धर्म गुरु, अपने धर्म का सहारा लेकर तीन तलाक को सही साबित की भरपूर कोशिश में लगे हैं। यह बेहद निंदनीय है। कोई भी धर्म या व्यवस्था या कानून मानवता के खिलाफ नहीं होना चाहिए। चाहे धर्म हो या कोई कानून इनका मकसद मानवता की रक्षा और समाज को सुखी समर्द्ध बनाना होता है न की सामाजिक बुराइयाँ पैदा करना या उन्हें स्थापित करना। आज तीन तलाक का मुद्दा उठाना भी समाज सुधार के लिए एक सार्थक प्रयास है। तलाक देना एक बात है परन्तु उससे किसी की जिन्दगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए, विशेष करके महिला की रोजी रोटी सुरछित रहनी चाहिए। समाज में यदि कोई भी बुराई है तो उसे समाज से बाहर करने का प्रयास करना चाहिए न की अपने धर्म या अपने समाज मे व्याप्त कुरीतियों का संरक्षण करें। सामाजिक बुराईयों का आशय यह होता कि मानव का अधिकार और मानवता की रक्षा सुनिश्चित हो सके। दूसरों को दुःख पहुचाकर की अपना धंधा चमकाने का प्रयास एक पाप ही हो सकता है जिसे धर्म के चश्मे से सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
देश में इस मुद्दे पर जैसे घमासान मचा हुआ है। विशेष कर राजनितिक पार्टियाँ अपने आप को ज्यादा मुस्लिमों के साथ दिखने का प्रयत्न कर रहे है। यहाँ पर एक बात जरूरी हो जाती है कि इसपर राजनितिक पार्टियों को अपना रुख स्पस्ट करना चाहिए। गोल गोल बात घुमाने से बात समझ में नहीं आती। उन्हें यह बात स्पस्ट करनी चाहिय की वो तीन तलक का समर्थन करते है अथवा विरोध। आजतक भारतीय जनता पार्टी के अलावा सभी ने गोल गोल जवाब दिया है जैसे कि इस मसले को उनके समुदाय पर छोड़ देना चाहिए इत्यादि। परन्तु यदि रुख साफ़ नहीं होगा तो यह कैसे पता चलेगा की कौन सौदेबाजी करता है और कौन मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ हैं।
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