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भाषा का महत्व @हिंदी

Hindustani
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भाषा का महत्व @हिंदी


………यदि हमारी सारी किताबें हिंदी भाषा में होती तो हमें ऐसी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ता और जितने समय में हम अंग्रेजी में लिखी एक किताब पढ़ते थे उतनी देर में हम हिंदी भाषा में लिखी हुई कई किताब पढ़ सकते थे। इससे हमारे ज्ञान और समझ में बहुत तीव्र वृद्धि होती। और जितना समय अंग्रेजी समझने में व्यर्थ हुआ उसमे हम कोई और बेहतर काम में कर सकते थे और विषय से हट कर अन्य किताबों का अध्यन कर सकते थे……..

कई बुद्धिजीवी अनेक मौकों पर, विशेषकर हिंदी दिवस पर हिंदी भाषा की विशेषता पर खूब भाषण देते रहते है और बड़ी बड़ी बातें करते है। उनके सभी वक्तव्यों के केंद्र में यह बात रहती थी की हमें अपनी भाषा की इज्जत करनी चाहिए और इसे सम्मान मिलना चाहिए, इसका प्रचार प्रसार होना चाहिए इत्यादि। हिंदी के विषय में मैंने जितने भी भाषण मैंने सुना वो लोग केवल यह बताते रहे की गाँधी जी ने हिंदी के बारे क्या क्या महान वक्तव्य दिये और क्या बढ़िया बढ़िया बातें कही हैं। परन्तु व्यावहारिक रूप से मै यह समझने में असफल रहा कि ये लोग हिंदी भाषा पर इतना जोर क्यूँ देते है आखिर अंग्रेजी में क्या बुराई है और हिंदी भाषा की वास्तव में क्या महत्व है। चुकि हिंदी घर की खेती थी और है भी, तो कभी इसके बारे में गहराइ से सोचा भी नहीं। शायद किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क या वार्तालाप भी नहीं हुआ जिससे कि इस मुद्दे पर वास्तविकता से रूबरू हो पाता।

यह बात सन २००३ – २००४ की है, जब मै कृषि स्नातक के अंतिम साल में पढ़ रहा था, उस समय हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बी. बी. सिंह थे। मैं गणतंत्र दिवस के अवसर पर उनका अभिभाषण सुन रहा था। चुकि वह एक बड़े और नामी वज्ञानिक थे और शोध कार्यों के लिए अक्सर विदेश की यात्रा करते रहते थे, उन्होने कई देशों का दौरा किया था। उन्होंने बताया कि उन्होंने विश्व के लगभग सभी प्रमुख देशों का दौरा किया है परन्तु कभी चीन नहीं गए। परन्तु पिछले कुछ महीने पहले उन्हें एक वैज्ञानिक के तौर पर चीन जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने बताया की किस तरह चीन अपना इंफ्रास्ट्रक्चर वर्ल्ड क्लास का तैयार कर रहा है, और लगभग आने वाले दस सालों में ही वह अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है।

उनके उस गणतंत्र दिवस की अभिभाषण ने मुझे खासा प्रभावित किया और पहली बार मुझे अपनी भाषा के महत्व के बारे में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हुआ। कुलपति महोदय ने बताया कि जो भी देश आगे बढ़ा है वो अपनी भाषा से ही आगे बढ़ा है। और इस बात को उन्होंने बहुत बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जिससे भाषा के बारे में मेरा सारी उलझन समाप्त हो गयी।

उन्होंने एक बात का जिक्र किया कि चीन में लोग केवल चीनी भाषा ही जानते है, और चीन में शायद ही कोई अंग्रेजी जानता हो। यदि आपको बाजार में जाकर कोई सामान खरादना हो तो आपको बहुत समय लगेगा और खासी मशक्कत करनी पड़ेगी, क्यूंकि कोई आपकी अंग्रेजी भाषा समझेगा ही नहीं।

उन्होंने यह भी बताया कि विज्ञान के लगभग सभी सिद्धांत (all scientific theories) चीन के वैज्ञानिको ने खुद अपने देश में शोध और खोज के आधार पर विकसित किया है। जिस प्रकार से हम पढ़ते हैं कि फला सिद्धांत फला वैज्ञानिक ने दिया था (लगभग सभी युरोपियाँ और अमेरिकन)। पर चीनी वैज्ञानिक अपने शोध के अनुसार और अपनी भाषा में सभी तरह की सिद्धांत प्रतिपादित करते  हैं।

यह बात सुनकर मुझे भाषा की ताकत का अहसास हुआ। चुकि मैं उत्तर प्रदेश बोर्ड के हिंदी माध्यम से पढ़ा था, और जब मैं यूनिवर्सिटी में पढने गया तो वहां सभी किताब अंग्रेजी में थी और प्रोफेसर भी अंग्रेजी में ही पढ़ाते थे। शुरू शुरू में मेरा ज्यादातर समय विषय पढने और समझने से ज्यादा अंग्रेजी में अनुवाद करने में ही गुजरता था। और ऐसा बहुत दिनों (सालों तक) तक चला तब जाकर भाषा पर पकड़ बनी और फिर कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई।

उनके अभिभाषण के बाद मैंने यह सोचना शुरू किया कि यदि हमारी सारी किताबें हिंदी भाषा में होती तो हमें ऐसी मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ता और जितने समय में हम अंग्रेजी में लिखी एक किताब पढ़ते थे उतनी देर में हम हिंदी भाषा में लिखी हुई कई किताब पढ़ सकते थे। इससे हमारे ज्ञान और समझ में बहुत तीव्र वृद्धि होती। और जितना समय अंग्रेजी समझने में व्यर्थ हुआ उसमे हम कोई और बेहतर काम में कर सकते थे और विषय से हट कर अन्य किताबों का अध्यन कर सकते थे। परन्तु अपने विषय को ही पढने और समझने में ही बहुत समय निकल गया। लोग कहते है की हमारा देश अमेरिका से पचास साल पीछे हैं, जापान से २५ साल पीछे है। हों भी क्यूँ ना, हम एक साल में जितनी किताबें और आर्टिकल्स पढ़ते है वो अमेरिका और जापान वाले एक महीने में ही पढ़ लेते है और साल भर में पता नहीं क्या क्या पढ़ लेते है और इसके अलावा अन्य भी बहुत कार्य कर लेते है। क्यूंकि उनको कुछ पढने लिखने के लिए भाषा पर संघर्ष और मेहनत नहीं करना पड़ता इसलिए उनके लिए यह कोई रुकावट नहीं है।वहीँ इसके उलट हम लोग किते भी अंग्रेजी के ज्ञाता क्यूँ न हो जायेंफिर भी रोज हमें कुछ न कुछ नए शब्द मिल ही जाते है जिसके लिए हमें डिक्शनरी की आवश्यकता पड़ती है और निरंतर हम भाषा से ही संघर्ष करते रहते है।

भारत की ज्यादातर जनसँख्या अभी भी भाषा को समझने में संघर्षरत है, जिसमे सबसे ज्यादा संख्या विद्यार्थियों की है। यदि विद्यार्थी केवल भाषा को समझने पर ही संघर्ष करते रहेंगे तो ज्ञान कब हासिल करेंगे। यही कारण है की हम बहुत पीछे रह गए और आगे भी लगभग दस  पंद्रह साल तक यही उम्मीद यही दिखाई पड़ती है।

ज्यादातर किताबे भी मूल रूप से अंगेजी में ही उपलब्ध है चाहे वह किसी भी की हों। खैर लोग भी अपने हाथ में अंग्रेजी किताबें ही रखना पसंद करते हैं, क्यूंकि वो अपने आपको अंग्रेजी पढने वाला और समझने वाला ही दिखाना पसंद करते हैं। जैसे मुझे नेल्सन मंडेला की जीवनी पढने में भी बहुत समय लगा। जितना समय मुझे एक किताब ख़तम करने में लगा उतने में में मैं कम से कम दस किताबें पढ़ कर ख़त्म कर सकता था।

हमारे देश में एक बहुत बड़ी विडंबना है कि यदि अंग्रेजी नहीं जानते तो हमें अनपढ़ की तरह समझा जाता है। जो लोग कुछ अंग्रेज बोलते हैं उन्हें बड़ी इज्जत के साथ लोग देखते हैं।

मैंने भी अपने कई ब्लॉग अंग्रेजी में लिखे ताकि लोग यह न समझ बैठें की यह भी अंग्रेजी नहीं जानते और हिंदी में लिखना इनकी मजबूरी है, और हिंदी में ही केवल ब्लॉग लिखता है। जब हम हिंदी भाषी होकर अपनी मात्र भाषा को लिखने में यह सोच रखते है, तो आप समझ सकते हैं की देश में हिंदी या अपनी मात्र भाषा को लेकर कितनी हीन भावना आम लोगों के मन में भरी हुई है।

हमारे देश में हिंदी को बिलकुल भी सम्मान नहीं मिलता, इसी कारण देश में सामान्यतः हिंदी के अच्छे अनुवादक भी नहीं हैं। यदि है भी तो या तो जल्दबाजी में या पेशवर अनुभव के आभाव में ऐसा अनुवाद करते हैं कि या तो अर्थ का अनर्थ कर देते है या उनके अनुवादों से कोई मतलब ही नहीं निकलता।

जब चीन, जापान, अमेरिका इत्यादी देश जो कि भारत से बहुत आगे है यदि वो अपनी भाषा के प्रति सम्मान रखते हुए भाषा को अपने विकास में अड़चन नहीं आने दिए तो भारत के लोगों को सामान्यतया यह सोचना चाहिए कि हमें भी किताबें और शोध भी हिंदी में ही करना चाहिए जिससे आम लोग तक वह ज्ञान पहुँच पाए। हम लोग कुछ पढ़े लिखे भी कही परन्तु यदि कोई सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति कुछ एडवांस ज्ञान अर्जित करने की कोशिश करे तो उसे पहले अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी फिर कही जाकर वह किसी एडवांस साहित्य या विषय का अध्यन कर पायेगा।

शायद बी बी सिंह जैसे लोग मुझे समय से नहीं मिले और में भाषा के महत्त्व को लेकर बहुत दिनों तक उलझन में रहा।

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