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भारत में गरीबी उन्मूलन के साधारण और ठोस उपाय

Hindustani
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भारत में गरीबी उन्मूलन के साधारण और ठोस उपाय

यदि भारत की ३५ (35%)प्रतिशत गरीब आबादी जिनके संख्या लगभग ४४ (44 cr) करोड़ है जिनमे बच्चे, बूढ़े, नौजवान सभी शामिल हैं यदि उन सभी को हर महीने 9०० (rs. 900)रुपये सीधे तौर पर दिया जाय तो सरकार को लगभग ४ लाख करोड़ (4 lakh cr.) रूपये खर्च करने पड़ेंगे। इस निधि का पैसा कहीं और से लाने कि आवश्यकता नहीं। यह पैसा अन्य लगभग सभी सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं (जिनका कोई औचित्य नहीं होगा) को बंद करके हासिल हो सकता है………

लोकतंत्र में सामाजिक सुरक्षा पाना हर नागरिक का अधिकार है। पिछले कुछ वर्षों से दुनिया के कई देशों ने अपने नागरिकों को एक निश्चित आय देने की बात की है . इसमें स्विट्ज़रलैंड, फ़िनलैंड, अमेरिका, यूरोप इत्यादि शामिल हैं, और अब कनाडा भी इसी रस्ते पर है ।
इस पर अमल करते हुए फ़िनलैंड ने अपने जरूरतमंद नागरिकों के लिए ५८७ डॉलर प्रति महीने देने का ऐलान कर दिया इससे इन नागरिकों के रहने खाने की जरूरतें पूरी हो पाएंगी।
जिन देशों की हम बात कर रहे हैं ये सभी विकसित देश हैं और इनके लगभग हर फैसले गहन अध्यन और विचार विमर्श के बाद ही तय होते हैं इस लिए हम इन देशों के विचार, प्रस्ताव या निर्णयों को हम गंभीरता से ले सकते है । चूकि यह मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण और गंभीर है तो जाहिर सी बात है की इस पर जरूर काफी गहन चिंतन किया गया होगा।
भारत में सामाजिक सुरक्षा के नाम पर तरह तरह की योजनाये चल रही हैं परन्तु लगभग सारी योजनाये भ्रस्टाचार की भेट चढ़ जाती हैं और इन सभी योजनाओ का परिणाम कोई खास नहीं निकलता। पिछले कुछ वर्षों में गरीबों के जीवन में परिवर्तन जरूर आया है परन्तु वो परिवर्तन सरकारी योजनाओ से कम, पर सूचना प्रोद्योगिकी क्रांति के फलस्वरूप देश में बढे हुए औद्द्योगिकीकरण के करण ज्यादा हुआ है। हमारे देश की परिस्थिति स्विट्ज़रलैंड, फ़िनलैंड, अमेरिका, और कनाडा से बिलकुल ही भिन्न है।
जिन देशों की हम बात कर रहे हैं वो सारे विकसित देश हैं और औद्योगिक अर्थव्यवस्था हैं, इसलिए भारत की इन देशों से तुलना ठीक नहीं है और इन देशों द्वारा चलायी जा रही सभी योजनाये भारत में भी सफलता पूर्वक पूर्ण होंगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। अतः हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी योजनाये तय करनी चाहिए।
परंतु जब गरीबी उन्नमूलन की बात आती है तो हम विकसित देशों के बनाये हुए नियमों को यहाँ भी लागु कर सकते हैं क्योंकि गरीब चाहे भारत का हो या किसी और देश का गरीब और गरीबी एक जैसे होती है। विकसित देशों में गरीबी ३ से लेकर १० प्रतिशत के बीच है परंतु भारत में गरीबी ३५ प्रतिशत के आसपास है और कुपोषण से लगभग ६५ प्रतिशत ग्रामीण आबादी प्रभावित है। इसलिए निश्चित आय देने की सामजिक सुरक्षा योजना भारत के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो सकती है, क्यूंकि यह हमारी मूलभूत आवश्यकता को पूर्ण करने में सछम है।

जहाँ तक इतनी बड़ी जनसँख्या को देने के लिए भरी भरकम रकम देने के लिए उसके स्रोत का सवाल है तो यदि लगभग सारी सामाजिक कल्याण की योजनाओं को बंद कर दिया (स्वास्थ्य को छोड़ कर) जाय तो किसी अलग से किसी भी प्रकार की निधि की वयवस्था नहीं करनी पड़ेगी ।

कुछ अर्थशास्त्री इसका विरोध करते हैं परन्तु उनके सारे तर्क शोध द्वारा गलत साबित हो चुके है, अतः इस तरह के विरोधों को ख़ारिज करते हुए ही स्विट्ज़रलैंड ने अपने नागरिकों को इस योजना का लाभ देने के लिए जनमत संग्रह कराया। परन्तु स्विट्ज़रलैंड में गरीबी केवल नाम मात्र की है और वहां की जनता ने स्वतः ही इस योजना को नकार दिया। परंतु फ़िनलैंड ने इसे लागू कर दिया. परन्तु यदि ऐसे जनमत संग्रह भारत में हो तो इस बात की गारंटी है कि इसे व्यापक समर्थन हासिल होगा, । यदि जनमत से हम अपने नेताओं का चुनाव कर सकते हैं तो फिर इस तरह की योजना के लिए भी जनमत संग्रह किया जा सकता है।

देश में गरीबी उन्नमूलन हेतु ढेर सारी योजनाएं हैं और पहले भी थी परंतु गरीबी ख़त्म नहीं हुई। अनगिनत परिवार गरीबी की भेंट चढ़ गए और आज भी यह सिलसिला जारी है।

यदि किसी देश कि ३५ प्रतिशत आबादी का जीवन अपनी जीविका चलाने की जद्दोजहत में बीतता है तो उसे अन्य चीजो के बारे में सोचने का समय नहीं मिलेगा और ऐसी परिस्थिति में उसकी मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं होगी। अतः समाज में तरह तरह के सामाजिक विकार उत्त्पन्न होंगे. अतः ये जरूरी है कि सरकारें अपने नागरिकों की मूलभूत जरूरत को पूरा करने में कदापि देर न करें।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यदि कृषि प्रधान देश में लोग खाने बिना मर रहे है और कुपोषित हैं तो हमारा कृषि प्रधान होने का क्या औचित्य है. कृषि प्रधान देश में कम से कम लोगों को भूखे पेट नहीं सोना चाहिए.

ऐसी योजना से कई फायेदे होंगे एक तो ये लोग खाने के बारे में चिंता नहीं करेंगे और दुसरे कामों पर ध्यान लगायेंगे. यदि व्यक्ति की भूख की आवश्यकता पूरी रहे तो वो काफी रचनात्मक सोच सकता है. एक संतुष्ट व्यक्ति अपने अंदर की अन्य अच्छाइयों को निखारने में, नए व्यापार करने में दिमाग लगाएगा। हमारे देश के लोगों में प्रतिभा कि कोई कमी नहीं है ,बस उसे निखारने की देर है। यह तभी हो सकता है जब लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए चिंतित न रहे।
इस प्रकार के कदम से देश में एक सकारात्मक सोच विकसित होगी और इसका प्रभाव भारत कि अर्थव्यवस्था पर व्यापक और सकारात्मक ही पड़ेगा।
आज जो देश की छवि एक गरीब राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने है वो बदलेगी, भारतियों का जीवन स्तर सुधरेगा और दुनिया के लोग भारत और भारतीय नागरिकों को सम्मान की नजर से देखेंगे। अतः आज देश में गरीबी उन्मूलन के लिए एक व्यापक और स्पष्ट निर्णय की आवश्यकता है।

आज जो भी योजना गरीबी उन्नमूलन या समाज कल्याण के लिए चलायी जा रही है उनमे कोई ऐसी योजना नहीं है जिससे परिणाम स्वरुप गरीबी को मिटाया जा सके । गरीबों को खाद्य उपलब्ध करने के लिए राशन की दूकाने बनायीं गयी हैं जहाँ पर सस्ती दरों पर राशन उपलब्ध होता है.
परंतु यह सर्विदित है कि राशन की दुकानों से ज्यादातर सामान बाहर की दुकानों को बेच दिया जाता है। इससे बड़ी मात्र में धन बर्बाद होता है और गरीबों को उनका हक़ भी नहीं मिलता और वो कर्ज मागने या भीख मांगने के लिए मजबूर होते हैं। गरीबी उन्नमूलन के लिए बहुत सारी योजनायें हैं और उनको धन आवंटित है और यह धन इस प्रकार से है : खाद्य सुरक्षा पर १.५ (1.5 lakh cr.) लाख करोड़ रूपए, मनरेगा के तहत 40000 (40000 cr)करोड़ रूपये, मिड डे मील पर 1.32 (1.23 lakh cr.) लाख करोड़ रूपये, फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी पर लगभग ७२ ००० (72000 cr. rupees)करोड़ रूपये। इसके अलावा बहुत सारी अन्य योजनाएं है जिनके मद में बहुत ढेर सारा पैसा आवंटित है । परंतु यदि ऊपर दे गयी योजनाओं के मद का ही पैसा जोड़ लें तो यह लगभग ४ लाख करोड़ होगा, और यदि भारत की ३५ (35%)प्रतिशत गरीब आबादी जिनके संख्या लगभग ४४ (44 cr) करोड़ है जिनमे बच्चे, बूढ़े, नौजवान सभी शामिल हैं यदि उन सभी को हर महीने 9०० (rs. 900)रुपये सीधे तौर पर दिया जाय तो सरकार को लगभग ४ लाख करोड़ (4 lakh cr.) रूपये खर्च करने पड़ेंगे। इस निधि का पैसा कहीं और से लाने कि आवश्यकता नहीं। यह पैसा ऊपर दी गयी योजनाओं को बंद करके हासिल हो सकता है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति को ९०० (900 rs) रुपये प्रति महीने दिया जाये और यदि किसी परिवार में ६ (six)सदस्य हैं तो उस परिवार कि ५४०० (5400 rupees)रुपये हर महीने प्राप्त होंगे। जोकि किसी भी गरीब परिवार के रहने और खाने कि आवश्यकता पूरी करने में सक्षम है।
जहाँ तक किसानों का सवाल है तो किसी भी सामान्य किसान के लिए भी यह पैसा काफी है। उसे लगभग हर महीने 5४००० रुपये मिलेंगे तो उसे खेती के लिए किसान क्रेडिट कार्ड लेने कि आवश्यकता नहीं है।
आज की परिस्थिति में गरीबी उन्नमूलन का इससे बेहतर और आसान तरीका दूसरा नहीं हो सकता है।

यदि हम ऊपर दी गयी योजनाओं का पैसा नागरिकों को निर्धारित आय देने में इस्तेमाल करें तो यह पैसा जो सरकार जरूरतमंदों को देगी बाजार में ही वापस आएगा। परिणाम स्वरुप देश की जी डी पी में तीव्र वृद्धि होगी। अभी तक इन इन योजनाओं का ज्यादातर पैसा भ्रस्टाचार के माध्यम से कुछ ही हाथों में रहता था, और ऐसे लोगों की संख्या केवल कुछ हजारों में। ऐसे लोग ज्यादा से ज्यादा प्रॉपर्टी और सोना खरीद कर रखते थे जो की बाजार में लगभग आता ही नहीं था। परंतु यदि यह सारा पैसा लगभग 40 करोड़ लोगों तक सीधा पहुंचेगा तो यह लगभग सब बाजार में आएगा।
भारत के लोग इस कदम का भरपूर समर्थन करेंगे क्यूंकि इससे नागरिकों में अपने देश के नेताओं और व्यवस्था पर विश्वास बढ़ेगा। अभी तक गरीब अपने को असहाय समझता है। और वह अपने एवम अपने परिवार का पेट पालने के लिए तरह तरह के उपाय अपनाता है। यदि कोई दैनिक मजदूर कुछ दिनों के लिए बीमार पड़ जाये तो उसके परिवार में जीवन यापन करने कि चुनौती होती है और अंततः वह कर्ज में डूब जाता है। और इसप्रकार की परिस्थितियों में सामान्य नागरिक अपने को असहाय पाता है। जहाँ तक व्यवस्था का सवाल है तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे किसी भी गरीब की इन परिस्थितियों में मदत की जा सके। अतः सामान्य नागरिक नेता और सिस्टम की और से अपने को लाचार पाता है। यह स्थिति किसी भी परिवार, समाज या राष्ट्र के लिए बहुत घातक है। अतः भारत के संविधान और राजनितिक व्यवस्था में विस्वास कायम करना ही किसी राजनेता या लीडर की सबसे बड़ी जीत है। यदि नागरिकों को अपने नेताओं और सिस्टम में विश्वास उत्त्पन्न हो जाय तो बड़ी से बड़ी मुसीबतों का समाधान भी लोग स्वमं ही ढूंढ निकालते हैं।

आज बहुत से लोग लोग दान धर्म इसलिए भी करते हैं की उनके द्वारा कुछ लोगों का जीवन बदला जा सके। इस प्रकार की सामाजिक योजना आने से, जो लोग काफी बड़ी मात्रा में दान करते हैं वो लोग सरकार के इस मद में सहयोग देंगे और ख़ुशी ख़ुशी टैक्स भी चुकाएंगे क्योंकि उनको यह दिखाई देगा की उनका टैक्स कुछ लोगों की भूख को वाकई में मिटाता है और किसी की मदद करने में लग रहा है। अतः इसके परिणाम बहुत ही सकारात्मक होंगे।

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