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सैनिकों के साथ में घृणित अफसरशाही

Hindustani
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सैनिकों के साथ में घृणित अफसरशाही

जहाँ तक सर्विस रिकॉर्ड की बात है तो जो भी व्यक्ति ख़राब व्यवस्था से तंग आकर एक आंदोलनकारी रूप अख्तियार करता है ऐसे व्यक्ति का सर्विस रिकॉर्ड कभी सही नहीं हो सकता। ज्यादातर लोग पाना सर्विस रिकॉर्ड दुरुस्त करने में नौकरी गुज़ार देते हैं

कोई भी संवेदनशील व्यक्ति यदि सेना के आवासीय परिसर से परिचित होता है तो वह आसानी से देख सकता है की वहां अफसरशाही किस कदर भरी हुई है . वहां के अफसर अपने अधीनस्थ जवानों से से अपने घर के ढेर सारे काम करवाते है और उसे अनुसाशन नाम के चादर से ढकने का प्रयत्न करते हैं. .

हाल ही में एक सेना के जवान ने जिस प्रकार सैनिकों के लिए खाने पीने में ख़राब गुणवत्ता को लेकर सोशल मीडिया पर अपना आक्रोश व्यक्त किया और उसके बाद सेना के अफसर जिस प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया दिए वह पूर्वानुमानित था . किसी भी भ्रस्ट व्यवस्था के खिलाफ यदि कोई खड़ा होगा तो उसे भ्रस्ट लोग अपनी चौकड़ी में उसे फ़साने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे .

जिस जवान ने खाने पीने की व्यवस्था पर सवाल खड़े किये उसके बारे में सेना के अधिकारी तुरंत उलटी सीढ़ी बातें करने लगे .सेना के अफसर बिना देर लगाए उसके सर्विस रिकॉर्ड की गलतियों को उजागर करके अपने पल्ला झाड़ने की कोशिश में लग गए . जहाँ अफसरशाही कूट कूट कर भरी हो वहां अफसरों से उम्मीद ही भला क्या कर सकते हैं. उस जवान ने भी सफाई दी की उसकी सर्विस रिकॉर्ड की कमियों को तो अफसरों ने गिना दिया परंतु उसके बाद जो उसको सम्मान सेना के द्वारा प्रदान किया गया उसके बारे में क्यों नहीं बताया गया. सेना के अफसरों ने बदनामी के डर से आननफानन में उसका तबादला कर दिया परंतु खाने की गुणवत्ता में खामी की बहुत चिंता नहीं की और अब तो स्वतः जांच करके सैनिकों के खाने को बढ़िया तक बता दिया.

जहाँ तक सर्विस रिकॉर्ड की बात है तो जो भी व्यक्ति ख़राब व्यवस्था से तंग आकर एक आंदोलनकारी रूप अख्तियार करता है ऐसे व्यक्ति का सर्विस रिकॉर्ड कभी सही नहीं हो सकता. ज्यादातर लोग पाना सर्विस रिकॉर्ड दुरुस्त करने में नौकरी गुज़ार देते हैं जिसके लिए वो तरह तरह के समझौते करते है ज्यादातर लोग चापलूसी और चमचागिरी को अपना हथियार बनाते हैं ताकि उनका सर्विस रिकॉर्ड अच्छा बना रहे जिससे उनकी पदोन्नति , वेतन वृद्धि , पेंशन इत्यादि में कोई रुकावट ना आये और वो साफ़ सुथरे सर्विस रिकॉर्ड के साथ रिटायर हों और बाकि की जिंदगी सुकून से बिता सकें. परंतु जो व्यक्ति इन सब की परवाह न करके सत्य के साथ रहता है और ख़राब व्यवस्था में सुधार चाहता है उसके साथ यह लगभग तय होता है की उसे  सर्विस रिकॉर्ड संबंधी अथवा अन्य समस्याएं आ सकती हैं. यदि देखा  जाय  तो महात्मा   गाँधी , सुभाष  चंद्र  बोस  , चंद्र  शेखर  आजाद  का भी रिकॉर्ड ख़राब ही था आखिर वो भी जेल गए थे .

जिन व्यवस्थाओं में  खामिया  ज्यादा होती हैं उसका प्रमुख कारण, उस व्यवस्था को बनाने और स्थापित करने वाले, ऐसी व्यवस्थएं बनाते हैं जो की उनको और उनके समकछ के लोगों के लिए फायदे का सौदा हों न की वो इसपर चिंतन करते हैं की व्यवस्था कैसे बेहतर बने. यही हाल सेना की अफसरशाही  का है.

अभी पता चला की सेना के जवानों को सम्मानित करने के लिए मैडल तक का इंतजाम सेना के महान अफसर नहीं कर पाते और जवानों को कहा जाता है की वो डुप्लीकेट मैडल बाजार से खरीद कर लाएं उसी से उन्हें सम्मानित किया जायेगा .

इससे बड़ी शर्म की बात कोई दूसरी नहीं हो सकती है. ऐसे अफसरों को डूब कर मर जाना चाहिए जो जवानों को इस तरह के सुझाव देते हैं . ऐसे लोगों के लिए शब्द तो बहुत हैं परंतु उन्हें यहाँ  इस्तेमाल करने में लेखनी भी शर्माती है. यदि इस मुद्दे को आज कोई सेना का जवान उठाता तो उसका सर्विस रिकॉर्ड भी लोगों को दिखाया जाता. सोचने वाली बात है की इतना शर्मनाक मुद्दा अभी तक सीधे जवानों की और से  नहीं आया . इसकी मुख्य वजह वही है जो ऊपर  कही गयी है की अपना सर्विस रिकॉर्ड अच्छा रखने के लिए हर तरह के जुर्म सहो, यही जीवन है, इस संस्कृति में भरोसा. ऐसी संस्कृति के रास्ते पर चलने के कारण उच्य अधिकारी अपना उल्लू सीधा करते है और अन्य लोग शोषड़ का शिकार होते हैं. जब कोई आंदोलनकारी विचारधारा का व्यक्ति इसप्रकार के तंत्र में आता है और बार बार वह इस प्रकार के मुद्दों को उठाता है तो जाहिर सी बात है की सभी भ्रस्ट लोग मिलकर उसका सर्विस रिकॉर्ड ख़राब कर देते हैं और बाद में उसी सर्विस रिकॉर्ड को अपने बचाव के लिए बड़ी ही बेशर्मी के इस्तेमाल करने में जरा सा भी देर नहीं लगाते.

अफसरों की मानसिकता में बदलाव के लिए सेना के उन नियम कानूनों को बदलना पड़ेगा जो आजादी के पहले ब्रिटिश राज में थे . भारत के सेना तंत्र में अभी भी आजादी के पहले के नियम कानून ही भरे पड़े हैं उनमे सुधार अभी तक नहीं किया गया . अफसरों को ट्रेनिंग भी देकर उनकी सोच में बदलाव की कोशिश भी करनी चाहिए ताकि जो सैनिक देश सेवा में  अपनी जान कुर्बान करने के लिए सदा ही तैयार रहते  हैं कम से कम उन्हें एक अच्छा माहौल प्रदान किया जाये.

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